Tuesday, April 2, 2013

पन्ना धाय : नमन है भारतभूमि की ऐसी स्वामिभक्त वीरांगना को


पन्ना धाय : नमन है भारतभूमि की ऐसी स्वामिभक्त वीरांगना को

गुजरात के बादशाह बहादुर शाह ने जनवरी १५३५ में चित्तोड़ पहुंचकर दुर्ग को घेर लिया इससे पहले हमले की ख़बर सुनकर चित्तोड़ की राजमाता कर्मवती ने अपने सभी राजपूत सामंतों को संदेश भिजवा दिया कि- यह तुम्हारी मातृभूमि है, इसे मै तुम्हे सौपती हूँ चाहो तो इसे रखो या दुश्मन को सौप दो | इस संदेश से पुरे मेवाड़ में सनसनी फ़ैल गई और सभी राजपूत सामंत मेवाड़ की रक्षार्थ चित्तोड़ दुर्ग में जमा हो गए |

रावत बाघ सिंह ने किले की रक्षात्मक मोर्चे बंदी करते हुए स्वयम प्रथम द्वार पर पाडल पोल पर युद्ध के लिए तैनात हुए |

मार्च १५३५ में बहादुरशाह के पुर्तगाली तोपचियों ने अंधाधुन गोले दाग कर किले की दीवारों को काफी नुकसान पहुचाया तथा किले निचे सुरंग बना उसमे विस्फोट कर किले की दीवारे उड़ा दी राजपूत सैनिक अपने शोर्यपूर्ण युद्ध के बावजूद तोपखाने के आगे टिक नही पाए और ऐसी स्थिति में जौहर और शाका का निर्णय लिया गया |

राजमाता कर्मवती के नेतृत्व में१३००० वीरांगनाओं ने विजय स्तम्भ के सामने लकड़ी के अभाव बारूद के ढेर पर बैठ कर जौहर व्रत का अनुष्ठान किया | जौहर व्रत संपन्न होने के बाद उसकी प्रज्वलित लपटों की छाया में राजपूतों ने केसरिया वस्त्र धारण कर शाका किया किले के द्वार खोल वे शत्रु सेना पर टूट पड़े इस युद्ध में इतना भयंकर रक्तपात हुआ की रक्त नाला बरसाती नाले की भांति बहने लगा |

योद्धाओं की लाशों को पाटकर बहादुर शाह किले में पहुँचा और भयंकर मार-काट और लूटपाट मचाई | चित्तोड़ विजय के बाद बहादुर शाह हुमायूँ से लड़ने रवाना हुआ और मंदसोर के पास मुग़ल सेना से हुए युद्ध में हार गया जिसकी ख़बर मिलते ही ७००० राजपूत सैनिकों ने आक्रमण कर पुनः चित्तोड़ दुर्ग पर कब्जा कर विक्रमादित्य को पुनः गद्दी पर बैठा दिया |

लेकिन चितौड़ लौटने पर विक्रमादित्य ने देखा कि नगर नष्ट हो चूका है और इस विनाशकारी युद्ध के बाद उतना ही विनाशकारी झगड़ा राज परिवार के बचे सदस्यों के बीच चल रहा है | चितौड़ का असली उत्तराधिकारी , विक्रमादित्य का अनुज उदय सिंह ,मात्र छ: वर्ष का था |

एक दासी पुत्र बनबीर ने रीजेंट के अधिकार हथिया लिए थे और उसकी नियत और लक्ष्य चितौड़ की राजगद्दी हासिल करना था | उसने विक्रमादित्य की हत्या कर , लक्ष्य के एक मात्र अवरोध चितौड़ के वंशानुगत उत्तराधिकारी बालक उदय की और ध्यान दिया | बालक उदय की धात्री माँ पन्ना ने , उसकी माँ राजमाता कर्मावती के जौहर (सामूहिक आत्मबलिदान ) द्वारा स्वर्गारोहण परपालन -पोषण का दायित्व संभाला था तथा स्वामी भक्तिव अनुकरणीय लगन से उसकी सुरक्षा की | उसका आवास चितौड़ स्थित कुम्भा महल में एक और ऊपर के भाग में था | पन्ना धाय को जब जानना खाने से निकलती चीखें सुनाई दी तो उसने अनुमान लगा लिया कि रक्त पिपासु बनबीर , राजकुमार बालक उदय सिंह की तलाश कर रहा है | उसने तुरंत शिशु उदय सिंह को टोकरी में सुलापत्तियों से ढक कर एक सेवक को उसे सुरक्षित निकालने का दायित्व सोंपा | फिर खाट पर उदय सिंह की जगह अपने पुत्र को लिटा दिया | सत्ता के मद में चूर क्रुद्ध बनबीर ने वहां पहुँचते ही तलवार घोंप कर पन्ना के बालक को उदय समझ मार डाला | नन्ही लाश को बिलखती पन्ना के शिशु राजा और स्वामिभक्त सेवक के पास पहुँचने से पहले ही , चिता पर जला दिया गया |

पन्ना कई सप्ताह देश में शरण के लिए भटकती रही पर दुष्ट बनबीर के खतरे के चलते कई राजकुलों ने जिन्हें पन्ना को आश्रय देना चाहिए था नहीं दिया | वह देशभर में राजद्रोहियों से बचती , कतराती तथा स्वामिभक्त प्रतीत होने वाले प्रजाजनों के सामने अपने को जाहिर करती भटकती रही | आखिर उसे शरण मिली कुम्भलगढ़ में , जहाँ यह जाने बिना कि उसकी भवितव्यता क्या है | उदय सिंह किलेदार का भांजा बनकर बड़ा हुआ | तेरह वर्ष का होते होते मेवाड़ी उमरावों ने उसे अपना राजा स्वीकार कर लिया और उनका राज्याभिषेक कर दिया इस तरह १५४२ में उदय सिंह मेवाड के वैधानिक महाराणा बन गए |

स्वामिभक्ति तथा त्वरित प्रत्युत्पन्नमति , दोनों के लिए श्रधेया नि:स्वार्थी पन्ना धाय जिसने अपने स्वामी की प्राण रक्षा के लिए अपने पुत्र का बलिदान दे दिया को उसी दिन से सिसोदिया कुल वीरांगना वीरांगना के रूप में सम्मान मिल रहा है | इतिहास में पन्ना धाय का नाम स्वामिभक्ति के शिरमोरों में स्वर्णाक्षरों में लिखा गया है |

अपने स्वामी की प्राण रक्षा के लिए इस तरह का बलिदान इतिहास में पढने को और कहीं नहीं मिलता |

नमन है भारतभूमि की ऐसी स्वामिभक्त वीरांगना को.......

Photo: पन्ना धाय :

गुजरात के बादशाह बहादुर शाह ने जनवरी १५३५ में चित्तोड़ पहुंचकर दुर्ग को घेर लिया इससे पहले हमले की ख़बर सुनकर चित्तोड़ की राजमाता कर्मवती ने अपने सभी राजपूत सामंतों को संदेश भिजवा दिया कि- यह तुम्हारी मातृभूमि है, इसे मै तुम्हे सौपती हूँ चाहो तो इसे रखो या दुश्मन को सौप दो | इस संदेश से पुरे मेवाड़ में सनसनी फ़ैल गई और सभी राजपूत सामंत मेवाड़ की रक्षार्थ चित्तोड़ दुर्ग में जमा हो गए | 

रावत बाघ सिंह ने किले की रक्षात्मक मोर्चे बंदी करते हुए स्वयम प्रथम द्वार पर पाडल पोल पर युद्ध के लिए तैनात हुए | 

मार्च १५३५ में बहादुरशाह के पुर्तगाली तोपचियों ने अंधाधुन गोले दाग कर किले की दीवारों को काफी नुकसान पहुचाया तथा किले निचे सुरंग बना उसमे विस्फोट कर किले की दीवारे उड़ा दी राजपूत सैनिक अपने शोर्यपूर्ण युद्ध के बावजूद तोपखाने के आगे टिक नही पाए और ऐसी स्थिति में जौहर और शाका का निर्णय लिया गया | 

राजमाता कर्मवती के नेतृत्व में१३००० वीरांगनाओं ने विजय स्तम्भ के सामने लकड़ी के अभाव बारूद के ढेर पर बैठ कर जौहर व्रत का अनुष्ठान किया | जौहर व्रत संपन्न होने के बाद उसकी प्रज्वलित लपटों की छाया में राजपूतों ने केसरिया वस्त्र धारण कर शाका किया किले के द्वार खोल वे शत्रु सेना पर टूट पड़े इस युद्ध में इतना भयंकर रक्तपात हुआ की रक्त नाला बरसाती नाले की भांति बहने लगा |

योद्धाओं की लाशों को पाटकर बहादुर शाह किले में पहुँचा और भयंकर मार-काट और लूटपाट मचाई | चित्तोड़ विजय के बाद बहादुर शाह हुमायूँ से लड़ने रवाना हुआ और मंदसोर के पास मुग़ल सेना से हुए युद्ध में हार गया जिसकी ख़बर मिलते ही ७००० राजपूत सैनिकों ने आक्रमण कर पुनः चित्तोड़ दुर्ग पर कब्जा कर विक्रमादित्य को पुनः गद्दी पर बैठा दिया |

लेकिन चितौड़ लौटने पर विक्रमादित्य ने देखा कि नगर नष्ट हो चूका है और इस विनाशकारी युद्ध के बाद उतना ही विनाशकारी झगड़ा राज परिवार के बचे सदस्यों के बीच चल रहा है | चितौड़ का असली उत्तराधिकारी , विक्रमादित्य का अनुज उदय सिंह ,मात्र छ: वर्ष का था | 

एक दासी पुत्र बनबीर ने रीजेंट के अधिकार हथिया लिए थे और उसकी नियत और लक्ष्य चितौड़ की राजगद्दी हासिल करना था | उसने विक्रमादित्य की हत्या कर , लक्ष्य के एक मात्र अवरोध चितौड़ के वंशानुगत उत्तराधिकारी बालक उदय की और ध्यान दिया | बालक उदय की धात्री माँ पन्ना ने , उसकी माँ राजमाता कर्मावती के जौहर (सामूहिक आत्मबलिदान ) द्वारा स्वर्गारोहण परपालन -पोषण का दायित्व संभाला था तथा स्वामी भक्तिव अनुकरणीय लगन से उसकी सुरक्षा की | उसका आवास चितौड़ स्थित कुम्भा महल में एक और ऊपर के भाग में था | पन्ना धाय को जब जानना खाने से निकलती चीखें सुनाई दी तो उसने अनुमान लगा लिया कि रक्त पिपासु बनबीर , राजकुमार बालक उदय सिंह की तलाश कर रहा है | उसने तुरंत शिशु उदय सिंह को टोकरी में सुलापत्तियों से ढक कर एक सेवक को उसे सुरक्षित निकालने का दायित्व सोंपा | फिर खाट पर उदय सिंह की जगह अपने पुत्र को लिटा दिया | सत्ता के मद में चूर क्रुद्ध बनबीर ने वहां पहुँचते ही तलवार घोंप कर पन्ना के बालक को उदय समझ मार डाला | नन्ही लाश को बिलखती पन्ना के शिशु राजा और स्वामिभक्त सेवक के पास पहुँचने से पहले ही , चिता पर जला दिया गया |

पन्ना कई सप्ताह देश में शरण के लिए भटकती रही पर दुष्ट बनबीर के खतरे के चलते कई राजकुलों ने जिन्हें पन्ना को आश्रय देना चाहिए था नहीं दिया | वह देशभर में राजद्रोहियों से बचती , कतराती तथा स्वामिभक्त प्रतीत होने वाले प्रजाजनों के सामने अपने को जाहिर करती भटकती रही | आखिर उसे शरण मिली कुम्भलगढ़ में , जहाँ यह जाने बिना कि उसकी भवितव्यता क्या है | उदय सिंह किलेदार का भांजा बनकर बड़ा हुआ | तेरह वर्ष का होते होते मेवाड़ी उमरावों ने उसे अपना राजा स्वीकार कर लिया और उनका राज्याभिषेक कर दिया इस तरह १५४२ में उदय सिंह मेवाड के वैधानिक महाराणा बन गए |

स्वामिभक्ति तथा त्वरित प्रत्युत्पन्नमति , दोनों के लिए श्रधेया नि:स्वार्थी पन्ना धाय जिसने अपने स्वामी की प्राण रक्षा के लिए अपने पुत्र का बलिदान दे दिया को उसी दिन से सिसोदिया कुल वीरांगना वीरांगना के रूप में सम्मान मिल रहा है | इतिहास में पन्ना धाय का नाम स्वामिभक्ति के शिरमोरों में स्वर्णाक्षरों में लिखा गया है |

अपने स्वामी की प्राण रक्षा के लिए इस तरह का बलिदान इतिहास में पढने को और कहीं नहीं मिलता |

नमन है भारतभूमि की ऐसी स्वामिभक्त वीरांगना को.......

# महावीर प्रसाद खिलेरी महावीर प्रसाद खिलेरीमहावीर प्रसाद खिलेरीमहावीर प्रसाद खिलेरी
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Sunday, March 17, 2013

Maulvi Mehboob Ali to Pandit Mahendra Pal Arya


Maulvi Mehboob Ali to Pandit Mahendra Pal Arya
From Quran to Vedas - Pandit Mahendra Pal Arya! 
24/10/2011 01:34:10   http://vaidikgyan.com/about



By Satish Purohit


(The story of how Maulvi Mehboob Ali, the Imam of the Badi
Masjid in Baduat, Uttar Pradesh, rejected Islam and became Pandit
Mahendra Pal Arya!)


Maulvi
Mehboob Ali used to be an imam who led believers in their worship of
Allah, the God of the Quran. He was much loved by his Hindu as well as
Muslim neighbours. Back then, he would chide them gently for sleeping
late when birds, who are beings lower in the divine scheme of things
than humans, were up and chirping. “Muslims should be in their mosques
by now and the Hindus in their temples thanking their Maker. It is not
done for humans to waste their time,” he would say. The residents of
neighbourhoods surrounding the Barwala Masjid in Badaut in Baghpat
district of Uttar Pradesh respected the maulvi.

The years rolled on for the maulvi as he tended assiduously to his
duties a leader of the faithful armed with a graduate degree in Islamic
studies. Till then, he was assured, as most Muslims are wont to, that
the Quran contained instructions from God himself. All one had to do to
navigate life and the hereafter was to heed its instructions and one
could not go wrong. In the winter of 1983, the good maulvi met Master
Shree Krishna Pal Singh, a teacher of science at the Gurukul
Indraprasth. Singh smiled when Ali delivered an impromptu lecture on the
Quran. “Will you be my guest at Gurukul Indraprasth maulvi?” he asked.
Pandit Arya says that he accepted the invitation because being a
Bengali, he was, like most Bengalis, free of sectarian biases that mar
communal relations in other parts of the country. It was evening when
the maulvi reached the Gurukul. His hosts took him to a simple but clean
room where he would live while he was at the Gurukul. It was time for
the maghrib namaz. The Maulvi  purified himself with ritual wazoo and
read his namaz before leaving his room for a stroll of the Gurukul. He
watched as the students, teachers and visitors performed a Vedic yagnya.
Some were attending to their sandhya.


Anonymous Apr 20, 2012
Later, there was a lecture on some Vedic subject and food was served.
The Maulvi had dinner with Krishna Pal Singh before repairing to his
room for his namaz. “Maulvi sahib, come,” said Krishna Pal Singh, “I
would like to introduce to our people here.” Ali was introduced to
Dharamveer, the mantri of the Gurukul and Swami Shaktivesh, a sanyasi.
“What is your life’s mission?” the swami asked the maulvi. “To warn
people of the world against falling prey to evil and to motivate them to
do what is right,” answered the maulvi. “That is what we do here as
well. That is indeed the aim of all Aryas. Why do you think we don’t
work together?” asked the swami. “I don’t know,” the maulvi admitted,
“let me give it thought.” The next day the Maulvi rose early – at 4 am –
to read his namaz. He stepped out of his room and saw the children
exercising. He met the teachers. They discussed spiritual matters,
including Islam with him. So far the maulvi had not been exposed to the
spiritual thought of any religion other than Islam and had concluded
that no other tradition had anything to add to what the Quran had to
say. “I did not know that there was a world outside my little well.
Swami Vivekananda probably had people like me in mind when he said that
the vastness of the ocean was beyond the mind of a frog whose life is
limited to his small well,” laughs Arya.

As the maulvi left Gurukul Indraprasth, Shree Dharmaveer handed a
copy of Swami Dayananda Saraswati’s Satyartha Prakash in Urdu to him. As
he sat in the bus to Badaut, the maulvi began to sift through the pages
till it opened on the fourteenth chapter that had the Quran as its
subject. The maulvi was surprised to see ayats of his holy book written
by a saffron-robed sanyasi. “I suffered the shock of my life. The book
had a picture of a kafir sanyasi and inside there were verses of the
Quran,” Arya reminisces. Swami Dayananda’s book, which continues to be
in print in nearly all the major languages of India, processes the Quran
and its claims in the light of the tenets of the Sanatan Vedic
tradition. To the Quran's “Whichever way ye turn, there is the face of
God. (2:109)” The Swami asks in Satyarth Prakash, "If this is true, why
do the Mohammedans turn their face towards Qibla (the sacred Mosque in
Mecca)? If it be argued that they have been commanded to do so, to
answer that they have also been permitted to turn their face in whatever
direction they choose. Now, which of these two (contradictory
statements) should be held to be true. Moreover, if God has a face, it
can only be in one direction and not in all directions at one and the
same time." In around 30,000 words, the fourteenth chapter of the
Satyarth Prakash demolishes the claims of Quran in the light of the
Vedas and points out inconsistencies, exaggerations and scientific
inaccuracies in the holy book of the Muslims.

The book had a profound affect on Maulvi Mehbbob Ali. “I had no
answers to the questions. I could not fault their reasoning. The razor
sharp logic had my certainties in tatters. Swami Dayanand Saraswati’s
Satyarth Prakash held my hand in the darkness that surrounded me and led
me to light,” says Pandit Arya. The maulvi made a list of questions and
doubts that had surfaced in his mind during his reading of the Satyarth
Prakash and mailed them to 25 leading muftis (Islamic scholars) of his
time. If the Quran was perfect guidance, the answers would surely come.
“I requested them to not to question my motivations but to answer what I
had asked to my satisfaction,” explains Arya. “Just seven scholars
wrote in. They said that I did not deserve the answers because by the
very the act of questioning the veracity and holiness of the Quran, I
had turned into an apostate in the eyes of Allah and his prophet.” Not
one scholar answered the doubts raised in the maulvi’s letter and  after
much soul searching and study of Vedas and Vedic scriptures, Maulvi
Mehboob Ali decided to become an apostate from Islam and embrace the
Vedic dharma. “On November 30, 1983, I underwent shuddhi and reclaimed
my rightful heritage as a Vedic Arya. After the ceremony, I addressed
thousands of Hindus and Muslims assembled at the venue and told them
that I was not changing my dharma because dharma cannot be changed. I
was mere ly changing my community. Illiterate, emotional, illogical and
unscientific, the Muslim ummah had no use for the truth, I explained.
From the darkness of Islam, I was moving to the light of the Vedic
tradition where reason is honoured and debates are encouraged. I
intended to spend the rest of my life among enlightened people,” says
Pandit Arya.

After Pandit Mahendra Pal Arya entered the Vedic tradition, he happened to meet Swami Agnivesh
who advised him against taking a new name. “Agnivesh told me that I
should retain my Muslim name and preach among Muslims. Amar Swami warned
me to keep away from Aginvesh because he was a shady character. He had
illegally taken possession of a part of the Janata Dal office near
Jantar Mantar,” Pandit Arya explains, “Swami Shaktivesh has chosen a
good name for you, he said. You are an Indian, why should you have an
Arab name?” “Since then Agnivesh has distinguished himself
by insulting the saffron robes that camouflage his shady intents. He
always aligns with anti-Hindu forces of all shades and persuasions,”
says Arya, “He wants the Satyarth Prakash edited, he stands with forces
that malign Maharishi Manu and is always seen siding with the mullahs
and maulanas on every issue that affects Hindus.”



For the last 29 years, Pandit Mahendra Pal Arya has facilitated
the return of several perverts to Islam. “I focus mainly on scholars of
Islam and have been successful in welcoming around 15,000 Muslims back
into the Vedic faith. I am armed with the teachings of Maharishi
Dayanand Saraswati and the Vedas that are logical, humane and free from
all contradictions and scientific error.” Pandit Arya challenged
fundamentalist Wahabi preacher Zakir Naik to debate with him on an
Islamic issue of his choice in 2004. “Naik fancies himself a student of
comparative religions and always runs down the Vedas and Vedic
literature. He maintains a well-equipped and well-staffed office in
Dongri, Mumbai that operates with the sole aim of misleading and
converting uninformed Hindus to Islam.” Pandit Arya says Hindus are
disorganised, mired in superstitions and always caught sleeping while
missionaries execute their nefarious designs. “It is time we wake up to
the threat and revive shuddhi to
welcome our brothers and sisters
back into the Vedic fold. Narendra Modi is being criticised because he
refused to wear an Islamic cap. Would the maulana who felt insulted
because Modi refused to the skull cap wear a string of rudraksha beads
in public if a Hindu offered it to him?” demands Pandit Arya.


Note: This article is a first in a series on contemporary
Muslims who have rejected Islam and embraced Sanatan Dharma. Readers may
contact Pandit Mahendra Pal Arya on 


mparya2010@gmail.com
Anonymous Apr 20, 2012
In 2002, Dr Zakir Naik mailed
him with his views on Islam. Pandit Mahendra Pal replied with his own
set of questions. He invited Dr Naik to debate with him in public.
 The
invitation is available on internet as well. But since then, Dr
Naik has been avoiding him. In 2006, he defeated Abdullah Tariq of
Rampur (an eminent scholar of Islam) in a debate at Bulandshahar.
Since then Abdullah Tariq has been refusing to have any public discussions with anyone from Vedic background.
I
am attaching a pdf of the text of challenge issued by Pandit Mahendra
Pal Arya. It is in Hindi and contains certain questions. If they are
answered, he is more than willing to accept Islam. He can be contacted
at +919 810 797 056.

Wednesday, February 13, 2013

शहीद रोशन सिंह

हीद रोशन सिंह :- जन्म:१८९२-मृत्यु:१९२७(फासी) : उत्तर प्रदेश
काकोरी काण्ड के सूत्रधार पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल व उनके सहकारी अशफाक उल्ला खाँ के साथ १९ दिसम्बर १९२७ को फाँसी दे दी गयी। ये तीनों ही क्रान्तिकारी उत्तर प्रदेश के शहीदगढ़ कहे जाने वाले जनपद शाहजहाँपुर के रहने वाले थे।
रोशन सिंह का जन्म उत्तर प्रदेश के ख्यातिप्राप्त जनपद शाहजहाँपुर में कस्बा फतेहगंज से १० किलोमीटर दूर स्थित गाँव नबादा में २२ जनवरी १८९२ को हुआ था।
बरेली में हुए गोली-काण्ड में एक पुलिस वाले की रायफल छीनकर जबर्दस्त फायरिंग शुरू कर दी थी जिसके कारण हमलावर पुलिस को उल्टे पाँव भागना पडा। मुकदमा चला और ठाकुर रोशन सिंह को सेण्ट्रल जेल बरेली में दो साल वामशक्कत कैद (Rigorous Imprisonment) की सजा काटनी पडी थी
फासी से पहले लिखा :
"जिन्दगी जिन्दा-दिली को जान ऐ रोशन!
वरना कितने ही यहाँ रोज फना होते हैं।"
हाथ में लेकर निर्विकार भाव से फाँसी घर की ओर चल दिये। फाँसी के फन्दे को चूमा फिर जोर से तीन वार वन्दे मातरम् का उद्घोष किया और वेद-मन्त्र - "ओ३म् विश्वानि देव सवितुर दुरितानि परासुव यद भद्रम तन्नासुव" - का जाप करते हुए फन्दे से झूल गये
इलाहाबाद में नैनी स्थित मलाका जेल के फाटक पर हजारों की संख्या में स्त्री-पुरुष युवा बाल-वृद्ध एकत्र थे ठाकुर साहब के अन्तिम दर्शन करने व उनकी अन्त्येष्टि में शामिल होने के लिये। जैसे ही उनका शव जेल कर्मचारी बाहर लाये वहाँ उपस्थित सभी लोगों ने नारा लगाया - "रोशन सिंह! अमर रहें!!" भारी जुलूस की शक्ल में शवयात्रा निकली और गंगा यमुना के संगम तट पर जाकर रुकी जहाँ वैदिक रीति से उनका अन्तिम संस्कार किया गया।
{{अमर शहीद ठाकुर रोशन सिंह और उनके साथियों ने कभी सोचा न होगा कि जिस धरती को आजाद कराने के लिए वह अपने प्राणों की बलि दे रहे हैं, उसी धरती पर उनके परिजन न्याय के लिए भटकेंगे और न्याय के बजाय जिल्लत झेलेंगे। दबंगों ने अमर शहीद रोशन सिंह की प्रपौत्री को न सिर्फ बेरहमी से पीटा, बल्कि सारे गांव के सामने फायरिंग करते हुए आग भी लगा दी। पुलिस ने चार दिन बाद एसपी के आदेश पर धारा 307 के तहत रिपोर्ट तो दर्ज की, लेकिन मनमानी तहरीर पर।}}
काकोरी कांड में फांसी की सजा पाने वाले अमर शहीद ठाकुर रोशन सिंह की प्रपौत्री इंदू सिंह की ननिहाल थाना सिंधौली के पैना बुजुर्ग गांव में है। नानी ने इंदू की शादी गांव के ही धनपाल सिंह से कर दी थी। धनपाल को शराब पिला पिलाकर गांव के दबंगों ने उसकी जमीन मकान सब लिखा लिया। करीब सात साल पहले धनपाल की मौत हो गई। इंदू तीनों बच्चों के साथ सड़क पर आ गई। मेहनत मजदूरी करके वह बच्चों का पेट पालने लगी। गांव के ही भानू सिंह ने गांव से लगे अपने खेत की बोरिंग पर एक मड़ैया डलवा दी। उसी में रहकर इंदू अपने बच्चों को पाल पोस रही है। पेट पालने के लिए उसके मासूम बच्चों को भी मजदूरी करनी पड़ती है। इंदू नरेगा मजदूर है।
फिलहाल इंदू तो जैसे तैसे अपने बच्चों को पाल पोस रही थी, लेकिन गांव के दबंगों को यह रास नहीं आया। गांव के सोनू सिंह और अनुज सिंह समेत चार पांच लोगों ने सरेशाम हमला कर इंदू सिंह को बेरहमी से पीटा, फायरिंग की और इसके बाद झोपड़ी में आग लगा दी। यह नजारा सैकड़ों लोगों ने देखा। उसकी गृहस्थी जलकर खाक हो गई। पहनने को कपड़े और खाने को दाना तक नहीं बचा। वह रात में ही थाने गई, लेकिन उससे पहले ही दबंगों के पक्ष में सत्ता पक्ष के एक विधायक राममूति सिंह वर्मा का फोन आ चुका था। पुलिस ने उसे टरका दिया। पुलिस तीन दिन तक उसे टरकाती रही। चौथे दिन वह एसपी से आकर मिली। एसपी के आदेश पर पुलिस रिपोर्ट लिखी, लेकिन इंदू की दी तहरीर पर नहीं। पुलिस ने उससे सादे कागज पर अंगूठा लगवा लिया और उसी पर मनमानी तहरीर लिख ली। छह में से सिर्फ दो आरोपियों को ही नामजद किया। पुलिस ने धारा 307 लगाई, लेकिन बाद में जांच में सारी धाराएं किनारे कर दीं और एक आरोपी का शांतिभंग में चालान कर इतिश्री कर ली।उसके बच्चों के पास पहनने को कपड़े तक नहीं हैं। घर में कुछ बचा नहीं है, इसलिए परिवार गांव में इधर उधर से मांग कर खाना खा रहा है।

{अब कहने को कुछ बाकी नही है ... आँखे नम है इन शहीदों का हमें गम है .}

Tuesday, January 1, 2013

चलो 2012 गया थोड़ा हिसाब-किताब तो बता दूँ

चलो 2012 गया थोड़ा हिसाब-किताब तो बता दूँ ,,,

बीते वर्ष में अमन पसंद इस्लामिक मुल्क के अमन पसंद नागरिको का आपस में लड़ कर मरने का आकडा :-

पाकिस्तान :- 5711
अफगानिस्तान :- 6799
सीरिया :- 59000 से अधिक टोप में
मिस्त्र :- 4566
लीबिया :- 19000 से अधिक
ईरान :- 1987
ईराक :- 4567
इंडोनेशिया :- 1734 ( 2069 गैर मुस्लिम भी )
उज्ज्बेकिस्तान :- 1103
फलिस्तीन :- 1300 से अधिक
मलेशिया मयंमार :- 2200 से अधिक
1000 से कम मौत वाले मुल्को का नाम बदनामी के डर से गोपनीय रखा गया है |.. आप समझ सकते हैं क्यों !

नोट :- ये आँकडे अक्टूबर तक के हैं, नवम्बर और दिसम्बर के आँकडे इसमें नहीं हैं 

Monday, December 31, 2012

कसाब के लिए प्रार्थना सभा आयोजित की


  • सेकुलरो ने कोच्ची की एक मस्जिद में पोरकी दरिन्दे कसाब
    के लिए प्रार्थना सभा आयोजित की - Internet Hindus
    Like ·  ·  · 3 minutes ago · 
  • Prayers for Ajmal Kasab in KOCHI

    Police have launched an investigation into the offering of prayers at a mosque here for Ajmal Kasab, who was hanged for carrying out the Mumbai terror attack in 2008.

    When the incident leaked out, police began a probe and questioned the mosque's authorities and those who had participated in the prayers.

    After the namaz, prayers were offered for departed souls and the priest had reportedly included the name of Kasab.
मित्रों, केंद्र की कांग्रेस सरकार ने मुख्य विपक्षी पार्टी"भारतीय जनता पार्टी" की ओर से श्रीमती सुषमा स्वराज (विपक्षी नेता, लोकसभा, एन.डी.ए. ) और श्री अरुण जेटली (विपक्षी नेता, राज्यसभा, एन.डी.ए.) के द्वारा रखी गयी तीनों मांगो को नामंजूर कर दिया गया है:

मांग नं. १. बलात्कारियों को फांसी की सजा का प्रावधान. साथ ही महिलाओं के साथ हिंसा करने वालों को बिना पीड़ित महिला की इजाजत के जमानत ना दी जाए का भी प्रावधान हो.

मांग नं. २: कनून को बदलने के लिए केंद्र सरकार तत्काल संसद का विशेष सत्र बुलाये , जिसमे गहन चर्चा होकर कानून परिवर्तित किये जा सकें, जिससे दामिनी के साथ-२ अन्य पीड़ित और कष्ट भोग रही महिलाओं को जल्दी न्याय मिले.

मांग नं. ३ : केंद्र की कांग्रेस की यू.पी.ए. सरकार जल्द ही सभी राजनीतिक पार्टियों की एक मीटिंग बुलाये जिसमें कठोर से कठोर सजा के कानून के मसोदे पर सभी पार्टियों की राय ली जाये...!!

मित्रों, आखिरकार कांग्रेस पार्टी क्या हिटलर राज चाहती है इस देश में, कि वो जो कहेगी वो ही होगा....!!